पेरेंटिंग दुनिया का सबसे बड़ा और चुनौती भरा रोल है। इसमें प्यार, धैर्य और समझदारी की बहुत जरूरत होती है। लेकिन कई बार माता-पिता को अपने बच्चों के साथ खेलने या बातचीत करने में दिक्कत होती है। अगर आपके मन में भी यह सवाल आता है कि, “क्या यह नॉर्मल है कि मुझे अपने बच्चे के साथ खेलना या बात करना नहीं आता?” तो जवाब है—हां, यह बिल्कुल नॉर्मल है, और आप अकेले नहीं हैं। यह ब्लॉग इस बात पर चर्चा करेगा कि ऐसा क्यों होता है, इसका बच्चों पर क्या असर पड़ता है, और कैसे आप इस गैप को कम कर सकते हैं।
क्यों कुछ पेरेंट्स को बच्चों के साथ खेलने या बात करने में दिक्कत होती है?
खुद को रोल मॉडल न मिलना
कई बार हमारे अपने माता-पिता हमारे साथ ज्यादा नहीं खेलते थे या बातचीत करते थे। ऐसे में हमें यह सीखने का मौका ही नहीं मिलता कि बच्चों के साथ कैसे इंटरैक्ट किया जाए।
भागदौड़ भरी जिंदगी
आजकल की लाइफ इतनी बिजी हो गई है कि पेरेंट्स के पास टाइम ही नहीं बचता। ऑफिस, घर के काम और दूसरी जिम्मेदारियों के बीच बच्चों के साथ खेलना या बात करना मुश्किल हो जाता है।
सांस्कृतिक या पारंपरिक सोच
कुछ परिवारों में बच्चों के साथ ज्यादा खेलने या बात करने को जरूरी नहीं माना जाता। वहां डिसिप्लिन और पढ़ाई को ज्यादा अहमियत दी जाती है।
शर्म या असहज महसूस करना
कुछ पेरेंट्स को लगता है कि वे बच्चों के साथ खेलने में अच्छे नहीं हैं या उन्हें नहीं पता कि कैसे खेलना है। इस वजह से वे कोशिश ही नहीं करते।
पर्सनैलिटी डिफरेंस
हर किसी की पर्सनैलिटी अलग होती है। कुछ लोग नेचुरली प्लेफुल होते हैं, तो कुछ को यह चीज थोड़ी अजीब लगती है।
बच्चों पर क्या असर पड़ता है?
अगर पेरेंट्स बच्चों के साथ ज्यादा इंटरैक्ट नहीं करते, तो इसका बच्चों पर कुछ यूं असर हो सकता है:
इमोशनल डिस्टेंस: बच्चे अपने माता-पिता से दूर हो सकते हैं।
डेवलपमेंटल इश्यूज: खेलना बच्चों के मेंटल और इमोशनल ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। इसकी कमी से उनका विकास प्रभावित हो सकता है।
लो सेल्फ-एस्टीम: बच्चे यह सोच सकते हैं कि उनके माता-पिता को उनकी परवाह नहीं है।

कैसे सुधारें यह गैप?
अगर आपको लगता है कि आप अपने बच्चे के साथ खेलने या बात करने में कमजोर हैं, तो घबराएं नहीं। यहां कुछ आसान टिप्स दिए गए हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं:
छोटे-छोटे कदम उठाएं
जरूरी नहीं कि आप बड़े-बड़े गेम्स खेलें। बस किताब पढ़ें, ड्रॉइंग करें या थोड़ी देर साथ बैठकर बात करें।
बच्चे को लीड करने दें
बच्चे को खुद चुनने दें कि वह क्या करना चाहता है। इससे आपको आइडिया मिलेगा और बच्चा भी खुश होगा।
पूरी तरह प्रेजेंट रहें
जब भी बच्चे के साथ समय बिताएं, तो फोन या दूसरे कामों से दूर रहें। बस 10-15 मिनट भी काफी होते हैं।
रोजमर्रा के कामों में शामिल करें
खाना बनाते समय गाना गाएं, कपड़े फोल्ड करते समय गेम खेलें—छोटी-छोटी चीजें भी बड़ा असर डालती हैं।
खुद को समय दें
पेरेंटिंग एक सीखने की प्रक्रिया है। अगर पहली बार में अजीब लगे, तो कोई बात नहीं। कोशिश करते रहें।
दूसरों से सीखें
अगर आपको आइडिया नहीं आता, तो दूसरे पेरेंट्स से बात करें या ऑनलाइन रिसोर्सेज देखें।
जब लगे कि मदद की जरूरत है
अगर आपको लगता है कि आप बहुत ज्यादा परेशान हैं या समझ नहीं आ रहा कि क्या करें, तो मदद लेने से न हिचकिचाएं:
पेरेंटिंग क्लासेस: कई जगहों पर पेरेंटिंग से जुड़े कोर्स होते हैं, जो आपकी मदद कर सकते हैं।
काउंसलिंग: अगर आपको लगता है कि आपके पास्ट एक्सपीरियंस या मेंटल हेल्थ इश्यूज इसकी वजह हैं, तो थेरेपिस्ट से बात करें।
पेरेंटिंग ग्रुप्स: दूसरे पेरेंट्स के साथ जुड़ें और उनसे आइडियाज शेयर करें।
आखिरी बात
यह बिल्कुल नॉर्मल है कि कुछ पेरेंट्स को बच्चों के साथ खेलना या बात करना नहीं आता। पेरेंटिंग कोई रेसिपी नहीं है जो सबके लिए एक जैसी हो। जरूरी यह है कि आप अपने बच्चे के साथ जुड़ने की कोशिश करें। छोटे-छोटे कदम भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
तो, गिल्टी फील करने की जगह, थोड़ा समय निकालें और अपने बच्चे के साथ जुड़ें। यह न सोचें कि आप परफेक्ट हैं या नहीं—बस प्रेजेंट रहें। आपकी छोटी सी कोशिश भी बच्चे की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला सकती है।